सितारों के आगे – इकबाल


सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं

क़ना’अत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं

अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं

तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं

इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं

गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं

  • अल्लामा इकबाल

These days I am reading Autobiography of yogi, listening to Raman Maharshi, Osho; trying Meditation…

And then I read these lines

इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा

के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं


So apt.


Also I remember Mir Taqi ‘Mir’ on the ocassion-

ये सरह सोने की जागाह नहीं बेदार रहो,

हमने करदी है खबर तुमको खबरदार रहो…

(बेदार : awake)

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