
अपने “फ़िल्टर” को” ऑन” करिये
हर शै कम्पलसरी है ज़िंदगी के लिए
बुद्ध भी ,कबीर भी
नीत्से भी ,सुकरात भी
आपके साथ बीयर पीकर रोने वाला दोस्त भी ,
आपको पहली दफा ना कहने वाली वो लड़की भी
क्रिकेट में आपको लगातार आउट करने वाला वो लड़का भी ,
जे सी बोस भी ,पोलियो की वैक्सीन ढूंढने वाला भी ,
रामानुजम भी, ए आर रहमान भी ,नुसरत भी ,आबिदा भी,
मेहंदी हसन भी ,जगजीत भी और बीटल्स भी
Imaging argentina भी रूह को आवाज लगाती है ,
boys in stripped pajama भी ,
दो बीघा जमीन भी, मिर्च मसाला भी।
कुछ किताबें मुझे पहले सा नही रहने देती ,कुछ गीत भी ।
अदब और आर्ट की अपनी आवाजे है।
इस बहस में नही पड़िये क्या कमतर है और क्या बेहतर।
सब अपनी जगहों में अच्छे है ,अपने वक़्त में उतने ही जरूरी।
जो भी ज़िंदगी में सकून दे ,बेहतर करे ,आपकी रूह को रिफाइन करे
अच्छी है।
आप प्रोग्रेसिव है ,भीड़ से अलग है ईश्वर में बीलिव नहीं करते ,मुझमे और आप में एक फर्क है .
आप जिन्हे “धर्म ” मान कर नकारते है मै उन्हें “अन्धविश्वास” मानता हूँ।
आप जिन रीती रवाजो /परम्पराओ को धर्म कहते है मै उन्हें व्यर्थ की मूर्खता की एक प्लांड वे एक चालाक समाज द्वारा अपनी सत्ता के लिए तैयार की गयी मेन्टल कंडीशनिंग मानता हूँ।
जो गलत तर्जुमा पढ़ रहे है आप उन्हें देख रहे है ,मै कह रहा हूँ वे वो चैप्टर पढ़ रहे है जो डिस्कार्डेड है।
महत्वपूर्ण बात एक अच्छा मनुष्य होना है
नास्तिक हो कर भी यदि आप ईष्या क्रोध ,अहंकार से मुक्त नहीं हुए आपने इस समाज को ,सोसायटी को कुछ वापस नहीं दिया तो आप दूसरे अंधविश्वास में जकड़े हुए है।
हठ भी एक किस्म की जड़ता है
आप जिन्हे” गुड हैबिट्स “कहते है मै उन्हें धर्म कहता हूँ
चेतना आपमें मनुष्यता लाती है !
जड़ता से “फ्री “करती है
आपकी मनुष्यता को रिफाइन करती है
आप अचानक बैडमिंटन खेल ले ,क्रिकेट में चार ओवर फेंक दे ,कोई भारी सामान उठा ले तो अगले दिन आपको अपनी बांह में दर्द महसूस होगा ,छूने पर मांस पेशिया अकड़ी हुई
क्यों ?
क्यूंकि अब आपका शरीर उनका अभ्यस्त नहीं है
भले ही आपने बचपन में कितनी क्रिकेट खेली हो ,कितना बैडमिंटन !
पर मांसपेशिया निरंतर अभ्यास मांगती है।
कोई आदमी अचानक दस किलोमीटर नहीं दौड़ सकता
अपने फेफड़ो ,अपने स्टेमिना को उसे बिल्ट करना होता है।
ऐसे ही मनुष्यता एक “निरंतर अभ्यास” है
आप पांच साल पहले अच्छे मनुष्य थे इसका अर्थ ये नहीं आज भी होंगे !
हर नया दिन एक लिटमस टेस्ट है !
ये लिटमस टेस्ट अलग अलग परिस्थितियों में अलग अलग व्यक्तियों के साथ होते है
पहले “डिस्टिकंशन” से पास हुआ इंसान आज ” फेल “हो सकता है !
ईश्वर या धर्म को बहस के सेंटर पर मत रखिये ,
आदमियत को रखिये मनुष्यता को रखिये ,
उसको मापने के इंस्ट्रयूमेन्ट को रखिये
अपने फ़िल्टर को ऑन रखिये
सर्विस कराते रहिये
Dr. Anurag Arya
From his FB post on 1st August 2017
सत्यवचन भाई सत्यवचन।
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