हताशा से एक व्यक्ति : विनोद कुमार शुक्ल

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था

इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था

हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे।

विनोद कुमार शुक्ल

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जीने की आदत : विनोद कुमार शुक्ल

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On a rainy evening

Remembering this beautiful poem by विनोद कुमार शुक्ल

Presenting a small part of this beautiful poem in the video.


पूरी कविता :

जीने की आदत पड़ गयी है
जीवन को जीने की ऐसी आदत में
बरसात के दिन हैं यदि
तो जीने की आदत में
बरसात हो रही होती है
छाता भूल गया तो
जीवन जीने की आदत में
छाता भूल जाता हूँ
और भींग जाता हूँ
जब बिजली कौंध जाती है
तब बिजली कौंध जाती है

आदतन जीना, उठना, बैठना, काम करना
थोड़े थोड़े भविष्य से ढेर सारे अतीत इकट्ठा करना
बचा हुवा तब भी ढेर सारा भविष्य होता है
ऐसे में ईश्वर है की नहीं की शंका में कहता हूँ
मुझे अच्छा मनुष्य बना दो
और सबको सुखी कर दो
तदानुसार अपनी कोशिश में पता नहीं कहाँ से
आदत से अधिक दुःख की बाढ़ आती है
जैसे पड़ोस में ही दुःख का बांध टूटा हो
और सुख का जो एक तिनका नहीं डूबता
दुःख से भरे चेहरे के भाव में
मुस्कुराहट सा तैर जाता है
न मुझे डूबने देता है, न पड़ोस को
और जब बिजली कौंध जाती है
तब बिजली कौंध जाती है

अंधेरे में बिजली कौंध जाने के उजाले में
सम्हलकर एक कदम आगे रख देता हूँ
जीवन जीने की ऐसी आदत में
जब मैं मर जाऊँगा
तो कोई कहेगा शायद मैं मरा नहीं
तब भी मैं मरा रहूँगा
बरसात हो रही होगी
तो जीवन जीने की आदत में
बरसात हो रही होगी
और मैं मरने के बाद
जीवन जीने की आदत में
अपना छाता भूल जाऊँगा

विनोद कुमार शुक्ल

मेरा बाप मेरी जिंदगी का हीरो है

मुद्दत के बा’द ख़्वाब में आया था मेरा बाप
और उस ने मुझ से इतना कहा ख़ुश रहा करो

अब्बास ताबीश

On Daddu’s 8th death anniversary,

‘मेरा बाप मेरी जिंदगी का हीरो है!’

Love u Daddu..!

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Full nazm by Ashima Tahir :

मेरा बाप मेरी ज़िंदगी का हीरो है
मायूसियों से भरे दिनों में
उस का एक इक लफ़्ज़ मेरे साथ साथ चलता है

याद है मुझे
कितनी उदास शामों में सुनाई गई
उस बूढ़े माही-गीर की
समुंदर में जारी जंग की दास्ताँ
बूढ़ा और समुंदर
और फिर हार जाने पर

कई बार ये अल्फ़ाज़
मेरी रूह में उतरते रहे
तबाही तो मुक़द्दर है मगर हारता है कौन यहाँ
शिकस्त तो आती रहेगी
दस्तकें देती रहेगी

जैसे मौत आती थी अमली के दर पे और
कह दिया जाता था उस को
जाओ वक़्त नहीं है मेरे पास जो तुम्हारे साथ हो लूँ

शिकस्त को भी कह दो बस
रुकता है अब कौन यहाँ तुम्हारे वास्ते

मेरा बाप मेरी ज़िंदगी का हीरो है
और हीरो बनने के लिए
ज़रूरी है कि गुज़रा जाए
अलमिया (तकलीफों) से बार बार

मेरा बाप मेरी ज़िंदगी का हीरो है

-आशीमा ताहिर

What is my art?

What is my art?

What is that i want to say…?

What is that i want you to know… ?

What is my message…?

What is our dialogue…?

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What you are sharing, why and how is imp.

Convey in short, convey with a story or a couplet and convey with colors. 😊

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