धर्म है – नीरज

जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना

उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है।

 

जिस वक्त जीना गैर मुमकिन सा लगे

उस वक्त जीना फ़र्ज है इन्सान का

लाज़िम लहर के साथ है तब खेलना

जब हो समुन्दर पे नशा तूफ़ान का

जिस वायु का दीपक बुझना ध्येय हो

उस वायु में दीपक जलाना धर्म है।

 

जब हाथ से टूटे न अपनी हथकड़ी

तब मांग लो ताकत स्वयं जंज़ीर से

जिस दम न थमती हो नयन सावन झड़ी

उस दम हंसी ले लो किसी तस्वीर से

जब गीत गाना गुनगुनाना जुर्म हो

तब गीत गाना गुनगुनाना धर्म है।

 

∼ गोपाल दास नीरज

 

(saved in my notes of Jan 2018)